हनुमान जयंती विशेष | जामवन्त जी ने सुनाई हनुमान जन्म कथा | Hanuman Jayanti Special
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हनुमान जयंती विशेष | जामवन्त जी ने सुनाई हनुमान जन्म कथा | Hanuman Jayanti Special |
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This Video Uploaded At 05-04-2023 01:30:20 |
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बजरंग बाण | पाठ करै बजरंग बाण की हनुमत रक्षा करै प्राण की | जय श्री हनुमान | तिलक प्रस्तुति 🙏
सीता की खोज में निकला वानर दल हनुमान को उनका विस्मृत बल याद दिलाता है कि किस प्रकार उन्होंने अपने बचपन में सूर्य को एक फल समझकर अपने मुँह में भर लिया था। इससे तीनों लोक में अन्धकार छा गया था। जब देवताओं ने आकर विनती की तब उन्होंने सूर्य को छोड़कर कष्ट निवारण किया था। जामवन्त हनुमान को यह भी याद दिलाते हैं कि वे हर दिन राम का नाम जपते रहे हैं और आज जब राम का काम आन पड़ा है तो उन्हें इसे पूर्ण करने के लिये अपना बल कौशल दिखाना होगा। बजरंग बली श्राप से मुक्त होते हैं, उन्हें अपना बल याद आता है और वे समुद्र लाँघने के लिये उड़ान भरते हैं। समुद्र के गर्भ से मैनाक पर्वत उभरता है और हनुमान से उसके शिखर पर कुछ देर विश्राम करने का निवेदन करता है किन्तु हनुमान को रामकाज किये बिना चैन कहाँ, सो वे बिना रुके अपनी यात्रा जारी रखते हैं। हनुमान के मार्ग में सुरसा राक्षसी उन्हें अपना आहार बनाने के लिये मुख खोले आती है। हनुमान सुरसा से निवेदन करते हैं कि वे सीता का पता लगाने के बाद वे स्वयं उसका आहार बनने के लिये वापस आ जायेंगे। सुरसा हनुमान को बताती है कि उसे
ब्रह्मा का वरदान है, उसे लाँघ कर कोई आगे नहीं जा सकता, इसलिये हनुमान को उसके मुँह के अन्दर जाना ही पड़ेगा। हनुमान इस विपत्ति को टालने के लिये बल नहीं, बुद्धि का सहारा लेते हैं। वे अपना आकार बहुत बड़ा कर लेते हैं। उनको मुँह में समाने के लिये सुरसा को अपना बदन बढ़ाना पड़ता है। तभी हनुमान अति लघु रूप कर लेते हैं और सुरसा के मुख में प्रवेश कर फुर्ती से बाहर निकल आते हैं। इस तरह ब्रह्मा के वरदान की रक्षा भी हो जाती है। राक्षसी सुरसा भी एक सुन्दर नारी में परिवर्तित होकर बताती है कि वो नागमाता है और देवताओं के कहने पर वो उनके बल और बुद्धि की परीक्षा लेने आयी थीं। हनुमान के रास्ते एक और विचित्र बाधा आती है। बीच समुद्र में सिहिका निशाचरी रहती है। वो आकाश में उड़ने वाले पंछियों को उनकी परछायी से पकड़ कर खा जाती थी। सिहिका ने पानी में हनुमान की छाया को अपनी मुठ्ठी में कैद कर लिया तो आकाश हनुमान का उड़ना रुक गया। सिहिका हनुमान की परछायी को पकड़कर उन्हें नीचे उतार लाती है और अपने मुख में रख लेती है तब हनुमान गदा प्रहार से उसका मस्तिष्क फाड़कर बाहर निकल आते हैं। सिहिका का प्राणान्त होता है। हनुमान सात योजन समन्दर पार करके लंका की पृथ्वी पर उतरते हैं और अति सूक्ष्म रूप धारण कर लंका में प्रवेश का प्रयास करते हैं लेकिन लंका की नगरदेवी लंकिनी की दृष्टि उनपर पड़ जाती है। वो हनुमान को रोकती है। हनुमान विशाल आकार धारण कर लंकिनी पर गदा से प्रहार करते हैं। घायल लंकिनी बताती है कि ब्रह्मा ने उससे कहा था था कि जब वो किसी वानर एक प्रहार से परास्त हो जाये तो समझ ले कि लंका के विनाश का समय आ गया है। वो हनुमान को अन्दर जाने देती है। अति सूक्ष्म रूप में हनुमान लंका का निरीक्षण करते हैं। महल में रावण को सोता देखकर हनुमान का मन एकबारगी उसे मार डालने का भी होता है। हनुमान सीता जी को नहीं पहचानते हैं। वे एक कक्ष में मन्दोदरी को सोता देखते हैं लेकिन उसके शान्त चित्त से समझ जाते हैं कि ये स्त्री सीता नहीं हो सकती। इसके बाद हनुमान विभीषण के महल में पहुँचते हैं। यहाँ राम का नाम सुनकर हनुमान ब्राह्मण का रूप रखकर विभीषण के सामने आते हैं। विभीषण उन्हें सीता को अशोक वाटिका में रखे जाने की जानकारी देते हैं। हनुमान गुपचुप ढंग से अशोक वाटिका पहुँच जाते हैं। वे ओट से देखते हैं कि एक दुखियारी नारी गुमसुम सी वृक्ष के नीचे अपलक किसी की बाट जोहते बैठी है। हनुमान उनकी दशा देखकर समझ जाते हैं कि यही सीता मैया हैं। हनुमान लघु रूप में अन्दर प्रवेश करते हैं और प्रहरियों की नजर से बचकर उसी अशोक वृक्ष के ऊपर छिप कर बैठ जाते हैं जिसके नीचे सीता हैं। तभी रावण मन्दोदरी और अपने अंगरक्षकों के साथ वहाँ आता है। सीता पुनः घास के तिनके की ओट लेती हैं। वह सीता को मनाने का अन्तिम प्रयास करता है किन्तु सीता अपने पतिव्रत पर अडिग हैं। हनुमान वृक्ष में छिपे रहकर दोनों का वार्तालाप सुनते हैं। रावण अपनी चन्द्रहास तलवार से सीता के प्राण लेने की धमकी देता है। उसे चन्द्रहास तलवार भगवान शिव ने प्रदान की थी। सीता चन्द्रहास से प्रार्थना करती हैं कि यदि वह भगवान शिव का वरदान है तो वह उनका शीश काटकर उनके पतिव्रत धर्म की रक्षा करे ताकि भगवान शिव को भी पता चले कि किसी कामुक पापी पुरुष को शक्तियाँ देने के क्या कुपरिणाम होते हैं। रावण सीता को मारने के लिये चन्द्रहास उठाता है। मन्दोदरी रावण का हाथ पकड़ लेती है और आतिथ्य में रहने वाली स्त्री की हत्या को नीति विरूद्ध बताकर उसे रोकने में सफल होती है। रावण सीता को दो मास का और समय देकर चला जाता है। राक्षसियाँ सीता को रावण से विवाह करने हेतु डराती हैं। त्रिजटा वहाँ आकर उन्हें रोकती है और बताती है कि उसने भोर का स्वप्न देखा है जिसमें राम लक्ष्मण के आगमन और लंका के विनाश के स्पष्ट संकेत थे। ये सुनकर राक्षसियाँ सीता से क्षमा माँगती हैं। सीता त्रिजटा से कहती हैं कि मृत्यु की देवी उन्हें अपनी गोद में क्यों नहीं बैठा लेती क्योंकि उनके प्रभु राम को कभी नहीं पता चलेगा कि उनकी वैदेही लंका में है। छिपकर सारा वार्तालाप सुन रहे हनुमान भावुक होते हैं। त्रिजटा सीता को ढाँढस बँधाकर चली जाती है। माता सीता को अकेला पाकर हनुमान वृक्ष में छिपे रहते हुए राम कथा का गान करते हैं। वे जानते हैं कि यदि वे एकदम से सीता के सामने गये तो वे डरकर चीख सकती हैं। हनुमान गाते हुए यह संकेत भी देते हैं कि प्रभु राम ने उन्हें दूत बनाकर भेजा है और उन्होंने निशानी के तौर पर अपनी मुद्रिका भेजी है।
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Film & Animation |
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