जलझूलनी एकादशी व्रत की कहानी जिसने व्रत पूजन किया उसने ब्रह्मा विष्णु सहित तीनों लोकों का पूजन किया।
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जलझूलनी एकादशी व्रत की कहानी जिसने व्रत पूजन किया उसने ब्रह्मा विष्णु सहित तीनों लोकों का पूजन किया। |
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29 August 2020# जलझूलनी एकादशी #परिवर्तिनी एकादशी
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जलवा पूजन एकादशी
#डोल ग्यारस
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जलझूलनी एकादशी/डोल ग्यारस व्रत कथा: 29 August 2020 परिवर्तनी एकादशी व वामन एकादशी भी कहा जाता है
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यह पद्मा/परिवर्तिनी एकादशी, जयंती और जलझूलनी एकादशी भी कहलाती है। इसका व्रत करने से वाजपेय यज्ञ का फल मिलता है। पापियों के पाप नाश करने के लिए इससे बढ़कर कोई उपाय नहीं। जो मनुष्य इस एकादशी के दिन मेरी (वामन रूप की) पूजा करता है, उससे तीनों लोक पूज्य होते हैं। अत: मोक्ष की इच्छा करने वाले मनुष्य इस व्रत को अवश्य करें।
जो कमलनयन भगवान का कमल से पूजन करते हैं, वे अवश्य भगवान के समीप जाते हैं। जिसने भाद्रपद शुक्ल एकादशी को व्रत और पूजन किया, उसने ब्रह्मा, विष्णु सहित तीनों लोकों का पूजन किया। अत: हरिवासर अर्थात एकादशी का व्रत अवश्य करना चाहिए। इस दिन भगवान करवट लेते हैं, इसलिए इसको परिवर्तिनी एकादशी भी कहते हैं।
भाद्रपद माह के शुक्ल पक्ष की एकादशी को जलझूलनी एकादशी व्रत किया जाता है।इस एकादशी के दिन भगवान विष्णु-लक्ष्मी का श्रृंगार करके खूबसूरत डोले में सजाकर यात्रा निकाली जाती है, इसलिए इसे डोल ग्यारस कहा जाता है। इसे पद्मा एकादशी और वामन एकादशी भी कहा जाता है।हिंदू धर्म में एकादशी तिथि बहुत ही पुण्य फलदायी तिथि मानी जाती है।
शास्त्रों में इस एकादशी का सर्वाधिक महत्व है क्योंकि इस दिन भगवान विष्णु और उनके आठवें अवतार भगवान श्रीकृष्ण की विशेष पूजा की जाती है। कहा जाता है इस दिन माता यशोदा का जलवा पूजन किया गया था। इसे परिवर्तनी एकादशी भी कहा जाता है क्योंकि चातुर्मास के दौरान अपने शयनकाल में इस दिन भगवान विष्णु करवट बदलते हैं।
आज वामन अवतार की भी पूजा की जाती है...
जलझूलनी एकादशी के दिन भगवान विष्णु के वामन अवतार की भी पूजा की जाती है, क्योंकि इसी दिन राजा बलि से भगवान विष्णु ने वामन रूप में उनका सर्वस्व दान में मांग लिया था एवं उसकी भक्ति से प्रसन्न् होकर अपनी एक प्रतिमा राजा बलि को सौंप दी थी, इसी वजह से इसे 'वामन एकादशी" भी कहा जाता है। यह पद्मा एकादशी के नाम से भी प्रसिद्ध है। पद्मा माता लक्ष्मी का एक नाम है। इस दिन जो व्यक्ति एकादशी का व्रत करता है उस पर मां लक्ष्मी अपना संपूर्ण वैभव लुटा देती है।
जलझूलनी एकादशी का महत्व
शास्त्रों का कथन है कि भाद्रपद माह के शुक्ल पक्ष की इस एकादशी को करने से वाजपेय यज्ञ के समान फल मिलता है। इससे जीवन से समस्त संकटों, कष्टों का नाश हो जाता है और व्यक्ति को मृत्यु के उपरांत मोक्ष प्राप्त हो जाता है। वह सीधा भगवान विष्णु के परम लोक बैकुंठ चला जाता है। जीवन में मान-सम्मान, प्रतिष्ठा, पद, धन-धान्य की प्राप्ति के लिए यह एकादशी प्रत्येक मनुष्य को करना चाहिए। चूंकि इसे पद्मा एकादशी भी कहा जाता है इसलिए मां लक्ष्मी की कृपा प्राप्त करने के लिए इस दिन उनकी विशेष पूजा का विधान भी है।
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हिन्दू शास्त्रों के अनुसार भाद्रपद शुक्ल एकादशी को वामन एकादशी कहते है। इस दिन भगवान विष्णु के वामन अवतार की पूजा की जाती है। जबकि कुछ मतों के अनुसार यह पर्व भद्र पद शुक्ल द्वादशी को वामन द्वादशी या वामन जयंती के रूप में मनाया जाता है। इस एकादशी को कई अन्य नामों से भी जाना जाता है जैसे- परिवर्तिनी एकादशी (Parivartani Ekadashi), पदमा एकादशी (Padma Ekadashi), जलझूलनी एकादशी (Jal Jhulani Ekadashi) एवं डोल ग्यारस (Dol Ekadashi) आदि। कुछ स्थानों पर ये दिन भगवान श्रीकृष्ण की सूरज पूजा (जन्म के बाद होने वाला मांगिलक कार्यक्रम) के रूप में मनाया जाता है।
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तब भगवान श्रीकृष्ण कहने लगे कि इस पुण्य, स्वर्ग और मोक्ष को देने वाली तथा सब पापों का नाश करने वाली, उत्तम वामन एकादशी का माहात्म्य मैं तुमसे कहता हूं तुम ध्यानपूर्वक सुनो।
यह पद्मा/परिवर्तिनी एकादशी, जयंती और जलझूलनी एकादशी भी कहलाती है। इसका व्रत करने से वाजपेय यज्ञ का फल मिलता है। पापियों के पाप नाश करने के लिए इससे बढ़कर कोई उपाय नहीं। जो मनुष्य इस एकादशी के दिन मेरी (वामन रूप की) पूजा करता है, उससे तीनों लोक पूज्य होते हैं। अत: मोक्ष की इच्छा करने वाले मनुष्य इस व्रत को अवश्य करें।
जो कमलनयन भगवान का कमल से पूजन करते हैं, वे अवश्य भगवान के समीप जाते हैं। जिसने भाद्रपद शुक्ल एकादशी को व्रत और पूजन किया, उसने ब्रह्मा, विष्णु सहित तीनों लोकों का पूजन किया। अत: हरिवासर अर्थात एकादशी का व्रत अवश्य करना चाहिए। इस दिन भगवान करवट लेते हैं, इसलिए इसको परिवर्तिनी एकादशी भी कहते हैं।
भगवान के वचन सुनकर युधिष्ठिर बोले कि भगवान! मुझे अतिसंदेह हो रहा है कि आप किस प्रकार सोते और करवट लेते हैं तथा किस तरह राजा बलि को बांधा और वामन रूप रखकर क्या-क्या लीलाएं कीं?
श्रीकृष्ण कहने लगे कि हे राजन! अब आप सब पापों को नष्ट करने वाली कथा का श्रवण करें।
त्रेतायुग में बलि नामक एक दैत्य था। वह मेरा परम भक्त था। विविध प्रकार के वेद सूक्तों से मेरा पूजन किया करता था और नित्य ही ब्राह्मणों का पूजन तथा यज्ञ के आयोजन करता था, लेकिन इंद्र से द्वेष के कारण उसने इंद्रलोक तथा सभी देवताओं को जीत लिया। |
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